द्वार पधारै म्हारे संत गुरदेवा, धिन म्हारौ धिन दिन येहेवा।
चरण खोळ चरणामत लेउ, तन मन धन संतन को देउ।
पांच सात सखीयन मिल आवै, आंगनीय म्हारै मंगल गावै।
भया उछाह फिरूं दिल फूली, आनंद के सागर में झूली।
प्रेम प्रीत की भई रसोई, तृप्त रांम सतगुर संत सोई।
उड़ै गुलाल पहुप धर छाई, रांम जनां पर वटंबधाई।
सतगतसमं सतगुर भेंट्या, मूलदास का सासां मेट्या॥