संतौ बसुधा बिरिछ समाई।
अद्भुत बात कही को मानै, कौन पतीजै भाई॥
मूल डाल सौं अधिर अंघृपा, बेलि कहां बिलंबावै।
तरुवर हुआ बीज नहिं दीख्या, बिहंग न बैठन पावै॥
रहता रूख फूल फल नाहीं, त्रिभुवन गूंद प्रकासै।
दीरघ द्रुम दीखैगा कोई, छाया तिमिर न भासै॥
अकलि बिरछ कंटिक क्रम नाहीं, पारजात पद पूरा।
जन रज्जब सौं जुगि जुगि निहचल, सबकी जीवनि मूरा॥