दरसन सांच जु सांई दीया, आदू आप उदर मैं कीया।

पिछला सब पाखंड पसारा, ऐसे सतगुर कहै हमारा॥

सुन्नति झूठ जु बाहरि काटी, कपट जनेऊ हाथैं बांटी।

मनमुखि मुद्रा मित्थ्या सींगी, भरम भगौहा धींगाधींगी॥

कपट कला जैनहु जगि ठाटी, फाड़ि कान फोकट मुखि माटी।

परपंच माला तिलक जुबानै, इहां ही आइ देही परि ठानै॥

षट दरसन खोटे कलि कीने, अलिभल आइ इलापरि लीने।

जन रज्जब सो मानै नाहीं, पैली छाप नाहिं इन माहीं॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै