अवधू सब सुख की निधि पाई।
विष सूं उळटि अमीं तेरै हुवै, जोतिहि जोति मिलाई॥
निस बासूर रटी रसना रुचि, अधिक अधिक ल्यौ लाई।
सतगुर सबद गगन जब गरज्यौ, मृद बसनि चतुराई॥
सुणि प्रीतम के बचन मनोहर, मनसा कै हूंहि बधाई।
परळै पड़ी जाइ थी जड़ बुधि, समरथि साहि छुड़ाई॥
नाहीं निबळ सबल बड़ि बांधी, कोइ न सकै भ्रमाई।
दिया सुहाग सकल सखियन मैं, सील सांच तैं भाई॥
हिलिमिलि हेत अधिक अति आतुर, मांगि उचिति मुकळाई।
कह हरदास सबनि सिर ऊपरि, बांह दइ राम राई॥