संत हरदास
वैरागी पंथ रा संत कवि।
वैरागी पंथ रा संत कवि।
अवधू अैसा खेल बिचारी
अवधू बैठां का गति नाहीं
अवधू कउवा तैं सर नासै
अवधू सब सुख की निधि पाई
अवधू सूतां कौ धन छीजै रै
भाइ रे, भेद भरम कै पैलै पासै
भायां ही भायां सुख भयौ
दसपदी
हरि की कथा सुणि रे क्रमहीणा
हरि न भजै ताकै मुखि छार
जन का जीव की रे भाई रीति रहस मैं
कहा करै माणस मन माड
माधौ किसौ मौंह ले मिलण आऊं
माधौ मास अमोलिक आयौ
मन की मूल ब्रित्ति न जाइ
राम का करूं हो करमगति आपणी
संतौ यहु दुख कासूं कहिए
सखी नीर भरिबा नहिं जाऊं
संतौ आई बात बिगोवै