काची पीपसी सा होठां नै

लिळपळातो पनजी मारू

गिणै इतियास रा दांत

धूजतो डील

आंसू अर सुबक्या सूं

संठ्योड़ा सपनां

तौ अणभावणा सा दिन

काळजै री खुणस

नी मिटै

नी छंटै

डांवर्‌योड़ौ मन

पगां री बिवायां में

तिड़कतै सपना नै

अंवेरै

पळका मारतो अतीत

किवाड़ री दांई खुलै—

डूंगर सूं

घास ल्यावती

नाडी रै मांय

उघाड़ै डील न्हावती लुगायां

तौ मझरातां में

चबका मारती नस

गूूंदी रै ओलै

नी टंटो, नी फौजदारी

फगत कलकत्तै री

चौकीदारी!

पनजी

ढ्योड़ै भोमयाजी रै थान सो

वो नी पढी

गीता अर रामायण

नी समझ्यौ

ओजणां करता वखत नै

उणनै नी ठा

कुण करैलो राज

अर कुण पलटसी तखत नै

पनजी

देखतो रैयौ

आवण लाग्या बांयटां

उण री पींड्यां रै मांय

दोगला लोगां री

सूगली कूबत सूं

जमीन राती पड़गी

धणियां रा सेवरा

बिखरग्या

गांव रै गोरवै में

देखतां-देखतां

रीजक पूठ फेरली

आखी भोम

जठै कदै झरतौ रगत

राजी हुयगी

देख पसीनो फगत

पनजी

देखतो रैयौ

ढाणी चेती

अर गूंजी जैजैकार

जूड़ै रा हंस्या बळद

अर लोग भाग्या

लेवण आजादी री मैकार

जमीन री भासा में

उग्याई थोर

ईमानदारी रा घरकूंड्यां माथै

पड़ण लागी लात बेथाग

अब नी करै पनजी

जीणै री बात

वो डाकोत नै तेल घाल’र

मां-बापां रै कपट रा

ताळा खोलै

भैरूंजी रै भोपां सूं बतळा’र

जियाजूण रौ दुखड़ो पूछौ

‘पनजी पनजी

कीं थोड़ी खोल

बखत री पोल’

‘सुण गोरधन बीरा!

जमानै रौ दोरोपणौ निरख’र

मन नी लागै कामकाज में

आजादी रै अत्ता बरस पछै

मांदो है गांव

खून सूं भर्‌योड़ी है

इण री गळियां

धूजै रोज मिनखपणौ

पेट रै भंगज सूं

सिलगै लोगां रौ अंतस

लोगां री बातां सूं

सगळा मेटै

आप-आपरी खाज

सांच मान

म्हैं तौ अबकै देख्यो

बोटां रौ राज

सगळा बरोबर

नी कोई बड़ो

तौ नीं कोई खास

फैरूं भी उग्याई

गांव री आंख्यां में घास

थू वळै

सावळ देख

काळौ है गांव राजनीती सूं

इचरज है धोळै-दोफारां

मरद री धोती खुलावणो

सांच नै सांच कैवण खातर

नेता नै चटावणौ

कुण सी बोरड़ी रै लागै

पिरजातंतर

बूझाआळा ने पूछूं

या रंगू स्यामी नै

इण रौ मंतर

अब तौ होयगो बोळो

इण गांव रै मांय

कुत्ता रौ रोळो

गोरधन!

अब तौ सांपां रौ बासो

गळी-गुवाड़

च्यारूंमेर

सबदां रै छलछिंदर री रमझोळ

करा दीजै गांठ रा पीसां सूं

इसकूल रौ कमरो

म्हारै घर नै

बणा दीजै सांडघर

इण खोटै जमानै में

अब तौ नी बणूं पितर।

स्रोत
  • पोथी : आज री कवितावांं ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह शेखावत ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी, रावत ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍सारस्वत ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : pratham
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