परभाते-परभाते

ऊगी आव्या सूरज बावजी

जई वेरे आपड़ी जीभ थकी

चाटवा मांडे ठंडक

तईस वेरे

म्हारा गाम नी नदी

रेत नी पछेड़ी ओढ़ी नै

सुई जाए

नै मएँ नै मएँ

बीती-बीती हा भरती जाय

नै सूरज बावजी नै

आतमवा नी वाड़ जोवे।

रोडिया, तीतरा, चमकदार भाटा

पाणी ना तणाव मएँ

रोड़वाई-रोड़वाई नै

लोड़ी हरका थई जाएँ

तारे 'कंकड़-कंकड़ मएँ ना शंकर'

तपता सूरज ना

पोगं तरै गसराई जएँ

नै तपता भाटा

फिरी 'शिव' बणी

आगली परभात नी वाड़ जोवे

नदी ना विशाल पाट नी जाजेम

नौतरू मेलती थकी

अगाडी वदती जाय।

कंचन पाणी नी

नानी-नानी माछलिए

फिरी कइयाक्

मछुआरा नी

भमी थकी नैयत

मै डेटोनेटर विस्पोट नी

कल्पना मएँ

कांपी पडै ने सम्पाई जएँ

पाणं ने खरवेड़ै ना ऊंडा मएँ

नै फिरी वाड जोवै के

वरसाद थाहे

नवु पाणी आवहे

ने नदी, 'नदी' केवाहे।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : ज्योतिपुंज ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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