अेकै कानी लोग

वन-महोच्छब मनार्‌या है

मनवा रैया है

दूजै कानी लोग

जंगळ काट रैया है

कटवा रैया है।

अै भी लोग है

बै भी लोग है

आपणै ही मुलक रा

आपणी’ज कौम रा।

जळसा सूं, भासणां सूं

पेट नीं भर्‌या करै है...

पेट तो गैरै अंधारै

जंगळ सूं काटी लकड़्यां सूं

भी नीं भरै।

दोन्यूं ही बातां गळत है

पेट भासण सूं भी भरै

पेट लकड़्यां सूं भी भरै

भूख-भूख रो फरक है।

भासण सूं अेक रो पेट भरै

पण लकड़्यां सूं तो

कतरा ही तर्‌या करै

जंगळ सूं लेय’र वन-महोच्छब रै

मंच ताईं लैण लाग री है।

कुण रो नांव बतावां

नांव बतावां’क

कुल्हाड़ी चलावां

वो भी काम है

भी काम है।

स्रोत
  • पोथी : हिवड़ै रो उजास ,
  • सिरजक : भगवतीलाल व्यास ,
  • संपादक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • प्रकाशक : शिक्षा विभाग राजस्थान के लिए उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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