सिरोळी मायड़भासा हंदी काया माथै
थूं पैर ऊभी इतिहास री फिराक
म्हैं संस्कृति रौ बरियान
‘इतिहास मरगौ’ कैवतौ
औ उत्तर-आधुनिक बाजतौ बगत
बण नै आयौ छै साख्यात काळ री आंधी
घटाटोप बिचाळै पळक-पळक पळकै बीजळी
ऊमड़-घुमड़ चढ़ आया बारूं ई मेघ
मायड़भोम बाजता खांडप-वन में अपां मांय सूं
कोई अरजण कोनीं
नीं गांडीव ई हाथबसु
व्है तौई बावणौ किणनै आवै?
अैड़ा में कित्तीक सेंठी रेवैला फिराक
अर कित्तोक गाढ बरियान में
लीर-झीर व्हैय अेक दिहाड़ै
सेवट नागौ व्हैणौ ईज लिख्यौ छै
अपांरी तकदीरां
इणसूं पैली के अपांरै डिगंबर डील नै
वांरौ आकरौ बायरौ आपरै अदीठ पंजां सूं
काट-काट
कण-कण रौ करतौ धूड़ में मिळावै
आव!
अपां लोगां सूं अरज करां
के वै अपांनै लुकाय लेवै आपरै कंठां
लोकगीतां री गळाई
अर नेहछौ राखै
के वै नीं बणैला नीलकंठ
औ हळाहळ कोनीं
छै तौ इमरत पण गरल रै खातै खताइजगौ
अर आप आपरी भासा रा महादेव छौ
लौ इण ओळावै ई सही
ओळखौ खुद रौ आपांण
अर म्हांनै नागा व्हैण सूं बचाय लो
दूजौ कोई टोटकौ कोनीं।