च्यारूं मेर कपट मन माणस,
फूलां रो कैय सूळ बिछावै।
मिरगतिरसणा मिस अै जग छळिया,
जद चावै जद नीर बतावै।
सगळां रै मुख पड़ी गुळ डळी, तूं तो मुखड़ो खोल कबीरा।
कूड़ कथणियां लाख करोङूं, तूं तो सांचो बोल कबीरा॥
धरती धन अन्न जळ सगळा सुख,
पण दुख भूख जगत कुरळावै।
नर सबळा नित लूट निवळ नै,
ठौड़ ठौड़ मुळकै हरखावै।
अै सगळा खोटा तोलणियां, तूं तो पूरो तोल कबीरा।
कूड़ कथणियां लाख करोङूं, तूं तो सांचो बोल कबीरा ।।
नित नव भेंडा काम कुटिल कर,
आछा रूप बोलै छपवावै।
परधन खरच आपरो मंडवा,
कीरत कोट सुजस जग पावै।
सुणा सदा ओछां री करणी, बजा बजा तूं ढोल कबीरा।
कूड़ कथणियां लाख करोङूं, तूं तो सांचो बोल कबीरा॥
कितरो पेटै पाप भर्यो नित,
पण मुख राग धरम री गावै।
लूट आबरू सील जगत नित,
खुद नैं इज्जतदार बतावै।
गळी चौवटै हाट बजारां, खोल इसां री पोल कबीरा।
कूड़ कथणियां लाख करोङूं, तूं तो सांचो बोल कबीरा॥