(अेक)

पांच तत्व नूं खोरिया रूपी घोर
मांडे है अदभुद कारीगर
नती लागतो मांडवा मए ऐनै 
वधारै टेंम
केमकै अणै बणावी दीधं
असंख्यात तरै-तरै नं

भांत-भांतिकं घोर
कई हेंगड़ा वारं पूंछड़ा वारं
रेंगवा वारं हैंडवा वारं दोड़वा वारं
थोड़क काचं तो थोड़क पाकं
थोड़क पौचं तो थोड़क मातं
पण... 
पछै बणाव्यू घणा मन थकी
पूरी हटोटी ऊं 
बै पगू घोर
बणावी नै राजी भी थ्यो
पण अतरौज पछतणो भी
खीजंणो भी 
पण करै हूं 
कैनै क्है नै कूण हाम्भरै 
अणै बै पोगं वारै तो 
बणाब्बा वारा नै भी
भूलावी दीधो 
यौ तो दोड़ै है नै
आंगास मअे उड़ै है 
मंडारा नूं नाम लई 
हेत्तं नै ठगै है 
अर 
ज्यूं मली जाय
व्यूं चगै है!


(दो)

जोवनियात छोरी नी
कम्मर वजू आमरा खातो 
समनियं नो धुंवाड़ो 
फैलाईग्यो है 
च्यारै मैरै
देखयं हैं अवै
मनख, रुंखड़ं, आंगास, पृथमी
नै सब 
जेम देखाय मूंडू
आंधा काच मय 

जातं यं
ऐना ओजरा मय 
हागड़ो, खाखरो, टेमण्णी
अड़ुओ, आंबो, अरेंडी न
लीलं सम रूंखड़ं 
काणू थईग्यू आंगास
फोंफाटा मारै हूरज 
जैणा थकी
हुकाई गई नंदी 
नै रई गई 
रैत...ज...रैत...


स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : उपेन्द्र अणु ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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