सूरज-चांद घणां उजवाळै

कीं उजवाळै आगियो।

छोटा-बड़ा बराबर राखै

थारै घर री रीत है।

पांणी रै सरवर, संमदर सूं

थें भर राखी है धरती।

पण चातक तो एक स्वात रै

छाँटै तणों नचीत है।

थूं तो है विस्तार धरण रो

थारो पार नहीं पायो।

पण थूं म्हांरै बीच रमै

नानैं-पण री जीत है।

इन्द्र धनुख रा रंग गगन में

फूल विगसिया बाड़ी में।

खिल्यो-खिल्यो म्हारो मन है

कै थारी प्रीत है?

गुण-मुण-गुण-मुण भंवरो गावै

रंग बिखेरै उड़ तितली।

थारा सगळा मीत, अदीठा!

थूं सगळां रो मीत है।

वेद-पुराण घणां बाँचिया

थारै जस नै कोड सूं।

पण अट-पटा बैण लघु कवि रा

थारा करुणा-गीत है।

सूरज-चाँद घणा उजवाळै

कीं उजवाळै आगियो।

छोटा-बड़ा बराबर राखै

थारै घर री रीत है।

स्रोत
  • पोथी : सगळां री पीड़ा-मेघ ,
  • सिरजक : नैनमल जैन ,
  • प्रकाशक : कला प्रकासण, जालोर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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