बेलिया! थारै बिना

म्हूं कांई अर जीवण कांई

अेक तिणकलो

काळ रै बहाव मांय

सैं कीं भूलग्या

पण बेलिया,

थारै प्रेम रौ बो अैसास

नीं भूल पाया

बो तो पल-पल

हरियो टांच बण रैवे

हरियाव

म्हारी जीवजड़ी बण

जीवण री गाडूली

खींच रैयो है

ज्यूं भतूळ रै भंवर सूं

तिणकलो

जको उड जावै

धोरां रै इण पार सूं

बीं पार तांई

जठै रेत रेत उडै

मुरधर रै मांय

पण प्रेम रा

ढिगला बण’र

धोरां सूं मिलणै री

आस मांय।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (अप्रैल-जुलाई 2021) ,
  • सिरजक : कृष्णा आचार्य ,
  • संपादक : शिवराज छंगाणी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर
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