आवणियै काल खातर सवाल जरूरी है—

काल अर आज में कांई फरक है?

सरमा-सरमी में मरगी पूरी दुनिया

काल आंख खुली जद सूं रील पाछी चालू करां

रोज करो जियां स्सौ-कीं करता थकां

पूग्या थाळी तांई!

दौड़्या थाळी तांई!

पाछा घिरिया थाळी तांई!

सरमा-सरमी में मरगी पूरी दुनिया

चानणै अर अंधारै मांय सगळो खेल थाळी तांई

थाळी सूं जुदा कांई है

काल अर आज रै दिन मांय

कैवै तो है सगळा—

स्सौ-कीं लिख्योड़ो है हथाळी मांय

खाली थाळी नै ना लेय’र बैठो

देखो कीं है कै नीं

है आज सूं काल जुड़्योड़ो

है काल सूं काल जुड़्योड़ो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी लोकचेतना री तिमाही ,
  • सिरजक : नीरज दइया ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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