रात सुपना बुणै

दिन हुवै कै

चाल पड़ै बो आपरै मारग

दूजां नैं बांटतो उजाळो

आखी रात अंधारै मांय

गणमण करतो रैवै

नीं ठाह कांई कैवै है

किणनैं कैवै है

बापड़ो सूरज

आपो-आपरी दुनिया मांय

भमतो रैवै।

स्रोत
  • पोथी : मन रो सरणाटो ,
  • सिरजक : इरशाद अज़ीज़ ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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