कोई उल्का पिंड

अंतरिख में भंवतो

नीं आय जावै

धरती री फेरी में

कै अटक जावै

जूण री सांस।

ओजोन-चादर रा तीणां

इत्ता चवड़ा नीं हुय जावै

कै सूक जावै-

लीली कूंपळां।

सूरज री किरणां

उजियारो पसरावतां

इत्ती आकरी नीं पड़ जावै

कै लाय लाग जावै रिंधरोही रै।

किणी दुखियारै रै

आंसुवां सूं

खारी नीं पड़ जावै

कोई नदी

कै उणरो पाणी

पीवण जोगो नीं रैवै।

परसेवै सूं हळाडोब

बा लुगाई बचा सकै

धरती नैं आखै संकटां सूं

जकी तुरपाई कर रैयी है

आपरै घर रै आंगणै।

तुरपाई करती लुगाई

जीवण रै पख में

एक लूंठो सत्याग्रह है।

स्रोत
  • पोथी : चीकणा दिन ,
  • सिरजक : डॉ. मदनगोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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