केई कांमरू कोचरियां तो उडगी

पण कोचर हाल रैगी है

इग नुवादियोड़ी माणसी रै

डरूं-फरूं हिये हेट,

अै खपणी खोगांळां खाली रियां ही

नवी कुचमाद री कोख रा बचिया

फेरू वां में पांगरै

लारलौ इतियास

इणी जापां रो जोखौ है,

इण खातर इणनै भरण रौ

जाझौ जतन करतां

म्हारी घणी रूपाळी रातां रा

अजपा औजका

सपनीजती पलकां तळै आफळै

नवी पीढी रौ पाणी

पतियांणसी कोई दिन

इण रा अै आखरां में उथलीजता

जीवता अैनांण।

स्रोत
  • पोथी : मिनख नै समझावणौ दोरौ है ,
  • सिरजक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै