खिड़की बोली परदा सूं
थारे इतरो हळबळाटो क्यांरो?
घड़ी-घड़ी हाले
घड़ी-घड़ी चाले
कदै म्हारो मूंडो उगड़ावे
कदै पूरो ढंक जावे
थने मूं सुहाऊ हूं क नी?
परदो बोल्यो—
“सुण ए म्हारी बैण
सांचा थारा नैण
ज्यांसू थारा नैण
ज्यांसू दीखे आर-पार
बता सके
बारें-भीतर रो ब्यौहार
पण ओ मिनख
ईंसू ही कांपे
म्हारी मदद सूं
थारो मूंडो ढंक न्हाके
क्यूंकि—
मिनख बारें कस्यो
भीतर कस्यो
ईं दोगळापण री थाह
कोयां ने भी
नी लागबा देबो चावे
थारे जेड़ा सांचा सूं
निजर्यां चुरावे
अर् मूं तो
ऊं रा कपट रो
सांचो साखी
सोचूं तो शरम सूं
भेळो हो जाऊं
थारी ओट म घुस जाऊं
जद भी वीं रा
कारज देखूं
तो मन हाले
उड़ चाले
पण कड़यां अर् रास सूं
बंध्योड़ी म्हारी काया
घणी ही मजबूर है।
थ्यावस यो ही, क
थूं ईसू दूर है
थनै अर् थारा सांच नै
मूं हिरदा सूं चावूं
जद भी मिनख सांच नै छोड़े
मूं थारी ढाल बण जाऊं
थन्ने वीं री
झूठी निजर्यां सूं बचाऊं
थारे तांई लोग-बाग
प्रगटे इयां सरदा।
‘सांच री खिड़की
झूठ रा परदा!’