परमातम यूं आतम सिरजी

अर काया चोळै में थिरपी

परमातम पैठ्यो

आतम में

आतम खुद बणगी परमातम।

पंच तत्व पंचामृत बण ग्या

उणरै सारू।

इमरत पियो अमर व्ही आतम।

कोड करै, काया में आवै,

समै काट तज उणनै जावै।

आवै-जावै

अर भरमावै

वा, काया सूं रमै-रमावै।

इण भव रै चक्कर में पड़ियो

जीव जगत रा गोता खावै।

आतम तौ है

परमातम रौ अंस सदामत,

उणरौ अंस,

उणी सूं आवै और

उणी में जा मिळ जावै।

सास्वत है,

चिर अर नित है,

अजर-अमर है।

मरै मार्‌यां

कटै काट्यां

नहीं अगन सूं बळै

पवन सूं झड़ै

जळ सूं गळै

अजय है।

जळम मरण सूं परे

आतमा!

इणरी कोई उमर नहीं है

आप अव्य है।

काया री है उमर,

जळम लै,

पळै-बढ़ै,

सेवट मर जावै।

स्रिष्टी रो नियम सास्वत

रचियो दाता

जळमै सो मर जाय

चूक न्हीं करै विधाता।

आतम उणरौ अंस

नहीं जळमै न्हीं जीवै,

नहीं जूण नै भुगतै,

नहीं जीवण खोवै।

तौ

अणत अनस्वर है

अर है अविनासी।

मरै

जीव री काया,

इणरौ

काळ विनासी!

आतम आवै

बसै जीव में,

काया धारै

विधना रा है खेल

बणावै और बिगाड़ै।

ब्रह्मा रो है कांम

घड़ै अर

घड़-घड़ भांगै

जीवण सारू

जीव भमै

तन-काया मांगै।

तौ सिरजण री सोच

जीव रा अंग बणावै

दे काया रो रूप

जीव नै उणमै थापै।

काया आई-गई

आतमा चौळा बदळै

जूनो छोड़ै डील,

वस्त्र ज्यूं जूना छोड़ै।

नुवीं जूण में

नुवैं चाव सूं

नुवैं डील में डेरा कर लै।

बूढ़ी होवै जर्जर काया

तौ तज देवै

पंच तत्व सूं

घड़ियोड़ो नव तन सज लेवै।

यूं चालै

चलतो रैवै

स्रिष्टी में

जीवण रो चक्कर।

स्रोत
  • पोथी : पिरथी पुत्र ,
  • सिरजक : ओमप्रकाश गर्ग ‘मधुप’ ,
  • प्रकाशक : बाबाजी प्रिन्टर्स ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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