गवाड़ रो जायो

कींनै बाप कै’र पुकारसी

आँख्याँ खोलै थड़ी करै

जियां कियां चालणो चावै

गुवाड़ ऊं घर

घर स्यूं सागी घर तांईं

पूगणै रा मारग पागड़ी रै पैचां दाईं

घणा घुमावदार है।

मारग में बिड़द बाँचणियाँ

जच्चै जठै लाघै

तुरता-फुरत

याद दिलावै

आपरी, आपरै बाप रो

आपरै खानदान री।

पाँवडै दो पाँवडै रो पैंडो

कोसां लाम्बो कर नाखै।

साँच नै झूठ में

बदलताँ कितरीक ताळ लागै

जलेबी भांत गळ्याँ रै

गूंगै झालां नै

कुणसो समझै

घिरै फिरै लाधै

सागी ठोड़!

स्रोत
  • पोथी : जूझती जूण ,
  • सिरजक : मोहम्मद सदीक ,
  • प्रकाशक : सलमा प्रकाशन (बीकानेर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै