गवाड़ रो जायो
कींनै बाप कै’र पुकारसी
आँख्याँ खोलै थड़ी करै
जियां कियां चालणो चावै
गुवाड़ ऊं घर
घर स्यूं सागी घर तांईं
पूगणै रा मारग पागड़ी रै पैचां दाईं
घणा घुमावदार है।
मारग में बिड़द बाँचणियाँ
जच्चै जठै लाघै
तुरता-फुरत
याद दिलावै
आपरी, आपरै बाप रो
आपरै खानदान री।
पाँवडै दो पाँवडै रो पैंडो
कोसां लाम्बो कर नाखै।
साँच नै झूठ में
बदलताँ कितरीक ताळ लागै
जलेबी भांत गळ्याँ रै
गूंगै झालां नै
कुणसो समझै
घिरै फिरै लाधै
सागी ठोड़!