तिरस रा अेक पड़ाव सूं

दूजै पड़ाव।

जैसलमेर आयगी हूं म्हारै पीवर

कोई ठपको कोनी दियो

बाइसा साथै चूक करण रो

मालदेवजी री अेक सोवणी सूं

धूजता लागै केई गढ़ कोट।

वैजयंती ज्यूं फरकूं म्हैं

देसां रै व्योमाळ

मनां रै देवळ

कोई सांम्ही मींट कोनी करै

आपरै अंकां कोनी उठाई

मालदेवजी म्हनैं ऊमा रै भरम।

मांन दियो वै अेक अणखी रूप नै।

छांनै कोनी राखी आपरी प्रीत

अर छळ कोनी कियो भोग सूं।

ओछो तुलग्यो वो म्हारी ताकड़ी

भोग रा संपूरण अरथां में

कोनी भोग सकियो नित नई जीत्योड़ी-धरती

कोनी रिंझाय सकियो भारमली सिवाय

कोई अवर नारी

अधूरो वीर, अधूरो भूपत

आधो पुरुस, आधो भंवरो॥

दूजी कांनी म्हैं भारमली।

जठीनै मोड़ दियो आपरो अंग वाहण

जठीनै संधाण कियो जोबन रो पुहप धनख,

जठीनै वाही रूप री खागां

बाजतै ढोलां जीत लिया मनां रा गढ़

धराधार करदी जूझारां री अखोणियां।

संपूरण भोग सूं ओछो

लियो, दियो

अर अलबेलो राजकंवर ?

अेक कापुरुस।

रगत री झूठी सौरम रै कळंक रा

मसाणिया हेला रो चाठो

कठै आयगी म्हैं ?

जांणै पाबासर रो हंस

मोती चुगण उतरग्यो ओछै नाडै

जांणै मरू में भटक्योड़ो किस्तूरी-मिरग

पूगग्यो करदम सरोवर।

हाल क्यांरा कोनी पूग्यो नीर

लागै अडवाणो कियो है पांणतियो

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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