म्हनै चितारणी मांय है

कै आयां बरस

उवा गूंथती हारलियां री डोर,

टीकां सूं मंड्योड़ी,

उवा गूंथती रेसम रै तांतणां रा

गोरबंद अर घरोघर

पांगळां रै गळां मांय

साजता हा सीता माई रा

गूंथ्योड़ा भांत-भंतिला रंग।

सीता माई!

आज लग समझ कोनी आयौ कै,

किण भांत गूंथता उवा ईंढांणी,

अर कींकर मंड़ता उण माथै

घूघरियां री लूंब।

सीता माई!

जिकौ म्हारै घरां बार-परब

ब्याव मांय गावता हीलौ

अर आखै दिन रमावता उवा

म्हारै घरां रै गीगलां नै,

म्हांरा दादीसा जिकौ

सीता माई री उमर रा ईज हा,

उवा दोय सूंघता नसवार अर

करता बातां मीरां रै हरजस री,

राणा रै कोप री अर

केकई रै छळ-बंधणां री।

सीता माई!

जिकौ आखातीज

मांय कूटता खीच,

उवा खीच री ओखळी

घड़ी ही सीता माई रै छोकरै ‘मांगूजी’,

मांगूजी जिकौ खड़ता हा

म्हारौ खेत अर

उगावता हरियल मूंग अर

मुटकणौ बाजरौ।

पण म्हनै आज लग

पल्लै कोनी पड़ी बात कै,

म्हारै घरां माथै इतरौ

हेत राखण वाळा,

उवा म्हारा सीता माई

अछूत कींकर व्है ग्या,

पीसणौ घालणै रौ

बासण बणावण वाळी,

आबड़छेट मांय किण भांत आई,

मांगूजी रै हाथ रा ईज अवैर्‌या लाटा

रौ अन्न खावतां थकां म्हैं,

मांगूजी नै अछूत

किण मूंडा सूं कैवां हां।

म्हनै कोनी समझ मांय आई

बात कै,

म्हनै हालरियौ गावण वाळी,

म्हारै हींड री लूंब गूंथण वाळी,

म्हारी दादी री उवा बूढ़की साथणकी,

आपरै खावण-पीवण रौ बासण

आपरै घरां सूं क्यूं लावै है?

म्हारी समझ सूं बारै है कै

म्हारी सीता-माई अछूत किंकर व्हैगी।

स्रोत
  • पोथी : डांडी रौ उथळाव ,
  • सिरजक : तेजस मुंगेरिया ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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