सिवयोड़ा हैं होंट

नीं मुंडै मायं जबान

रिस्तां रे बन्धनां में जकड़ी

औरत

कैवती तो कांई कैवती!

कदैई हालात

मौका नीं दियौ तो

कदैई समय नीं

दरद री दास्तां

औरत

कैवती तो कांई कैवती।

जदे कदम बढ़ायौ

तो देख्यौ च्यारूं मेर है

काच री दीवारां

औरत

कैवती तो कांई कैवती!

आपणी बंदिश रै रास्ता में

दूर तांई देख्यौ बाधावां रा निसाण

आपणां रै कदमां रा ही है

औरत

कैवती तो कांई कैवती!

प्रगति रै रास्ता चालण लागी

बेड़ियां सूं मुक्त हुवण री कोसिस

मुंड़ौ खौल्यौ तो

कैवयौ ग्यौ बगावत है

औरत

कैवती तो कांई कैवती!

स्रोत
  • पोथी : बगत अर बायरौ (कविता संग्रै) ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • प्रकाशक : साहित्य सरिता, बीकानेर ,
  • संस्करण : संस्करण
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