सिंझ्या हुयी

आथूणो सूरज आथमियो

आभै में छायो अंधारो

कलरव करता पंखीड़ा

घर कानी आया है पाछा

पण, म्हैं देखूं

गालां पर लाली छळकाती

आंख्यां में अपणास लियां

अेक लूगाई

होळै-होळै

पग में पायलड़ी झणकाती

रुणझुण नेवरिया घमकाती

कंदोरो कड़ियां रळकाती

उतर रैयी है

होळै-होळै

हां ! ईज तो

सिंझ्या-कामण है

रूप-रति मनभावण है।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : गजेन्द्र कंवर चम्पावत ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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