सिंझ्या हुयी
आथूणो सूरज आथमियो
आभै में छायो अंधारो
कलरव करता पंखीड़ा
घर कानी आया है पाछा
पण, म्हैं देखूं –
गालां पर लाली छळकाती
आंख्यां में अपणास लियां
अेक लूगाई
होळै-होळै
पग में पायलड़ी झणकाती
रुणझुण नेवरिया घमकाती
कंदोरो कड़ियां रळकाती
उतर रैयी है
होळै-होळै
हां ! आ ईज तो
सिंझ्या-कामण है
रूप-रति मनभावण है।