मन रै आंगणै

हाथां छूट्यौ कांसी थाळ—

थारौ बिछड़नो।

ऊंडै आभै गूंजती

रचती मून रौ संगीत—

थारी उडीक।

आभो आंगणै—

पाछौ मिजणौ थारौ।

नींतर जमारो

अेक उबासी लांबी-लड़ीड़।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : मालचन्द तिवाड़ी ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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