थारै सूं हर करती बगत

म्हैं नीं सोची ही

कै इत्तो बेगो

खिंड जावैलो

आपणै सपना रो महल।

हणैं

ओळू रै ओळावै

म्हैं झांक आवूं

मन रै खूणां मांय

उण महल रै अैनाणां नै।

म्हनैं पतियारो है

कै थूं

कदै-कदास तो

खंकेरती हुवैली

उण अंवेस्योड़ै सुख नै

इणीज भांत।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : मदन गोपाल लढ़ा ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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