परदेसी कठै सूं आया
धरती री किण ठौड़ सूं
मन में जिग्यासा
होठां पे आह! वाह!
रूपाळो रूप लियां।
केहड़ा ग्रह, नखतर, ब्रह्मांड सूं?
नदी समंदर नै पार करता
आकास-पाताळ नापता
कविता, कहाणी, उपन्यास बांचता
मस्ती री राग लियां
नेह री प्रीत लियां
कांधै बैग उठायां
दुनिया जेब मांय समेट्यां
गळी-गळी गंध बिखेरता
सरेआम बेली रो हाथ
हाथ में लेय’र
संबंधां रा नवा चितराम बणावता।
कठै सूं आया?
पंछी नै अचरज करता
लुगायां री हंसी मांय
मिनखां री सोच मांय
ऊंडा घणा ऊंडा उतरता
थे कठै सूं आया?