की दिनां पैली
जद के बसन्ती हवा
पागल हुयोड़ी फिरै ही
बड़लै री छीयां
गायां रै ओळ-दोळ फिरती
लाज री ओळियां मांडण लागगी
अंगा री आंक
रचाव अर कसाव
रेखावां पर गोळायां
उमर रै अंकगणित नै पार कर
रेखागणित री हद झाल ली
केई तिरभुज, केई चतुरभुज
ओपता पळकण लागा हा
देह रै पाना माथै
मिन्दर रौ टिंकोरौ
के, बळदियै री घांटी बंध्योड़ा घूघरा
जद-जद ई सुर री लैर रचता
वा अचाणचक औढणौ संभाळ
मारग रौ ओर-छोर नापती निजरां सूं
सुर रौ पतियारौ लेती
पर कदैई
तारां छाई ऊजळी रात रै आंगण ऊभी
'कुरजां' गावती लाजो।
कांई ठा नींद नै बिलमावती के बुलावती
खुद रै उळझाड़ में खुद ई उळझती
की दिनां पैली
बसन्ती हवा जद थिर-मंथर व्हैगी
रेखागणित री आडी-तिरछी
रेखावां री बांक-कांण मिटगी
लाजो रामतिया भूलगी
कांई व्है झरणी, कांई व्है आंधळघेटौ
खेल-कुदकड़ा स्सै भूलगी
डीलां रम्योड़ी-बस्योड़ो
बन-चम्पै री सुगंध, पराई व्हैगी
बड़लै री छीयां
बड़लै री पूग रै बारै व्हेगी
अर निसंक
बड़लै रै ओळू-दोळू फिरण आळी लाजो
परबस व्हैगी!
अर की दिनां पैली
जदके बसन्ती हवा नै पाळौ मारग्यौ
जद छीयां ने छीयां री जरूत नीं रैयी
अंकगणित अर रेखागणित रा सगळा आंक
अेक-दूजे रेळ-पेळ व्हैगा
व्हौ, कोई आवाज
अबै
लाजो ओढ़ण रौ पल्लो
दांतां में दबायौड़ी, निस्कारौ छोड दै
आथमते सूरज कांनी निजरां गडाय दै
अजै तांई
सरणाटै री हामळ भरती
बसंती हवा
आकासां चकारा काटै
कुरजां ई गाइजै अजै ताई
पण कुरजां री कुरळाट नीं गाइजै
नीं गा सकै कोई!