म्हारो पीव बसै परदेस

बायरिया!

कांई लायो सन्देस!

थारी गत अण-बाध अनोखी।

जणैं-जणैं नैं लागै चोखी।

थमै पलभर, वहतो रैवै

थूं दस दिसूं हमेस!

बायरिया!

कांई लायो संदेस!

सीतळतासूं मन हरखावै

गंध बाथ भर नैं लै आवै

फूल हंसै, डाळ्यां लैरावै

कळियां खिलै विसेस

बायरिया!

कांई लायो सन्देस!

जग रो खूणों कोई छांनो

सोझ रहयो किणनैं उरबाणो!

थनैं मन रो मीत मिळ्यो कांई

भमतो फिरै अजेस!

बायरिया!

कांई लायो संदेस!

इण जग री माया है न्यारी

प्रिय नैं कदै मिळै नीं प्यारी

जिण दिस दो दुखिया मिळता व्है

बता, कठै वो देस!

बायरिया!

कांई लायो सन्देस!

इण दाता रो दान निराळो

रीतो राखै है प्यालो

सोधण सारू स्रिस्टि पड़ी है

सोध, कठै अपणेस!

बायरिया!

कांई लायो सन्देस!

म्हारो पीव बसै परदेस

बायरिया!

कांई लायो सन्देस!

स्रोत
  • पोथी : सगळां री पीड़ा-मेघ ,
  • सिरजक : नैनमल जैन ,
  • प्रकाशक : कला प्रकासण, जालोर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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