उभर्योड़ी धरती पर जद,
बिरवा दो फूटण लाग्या।
कांकरियां बीच नवेली—
माटी भी मुळकण लागी।
कूंपळ जद गीत सुणाया,
उगती सी आस ठिठकगी,
पंछीड़ो डाळी ऊपर,
किरणं में न्हावण लाग्यो।
रूंखा री टूंक लचकगी,
परभाती रो रस पीके।
सूत्योड़ो हरजस गूंज्यो,
चाकी री धुन में जी के।
सांसां में सौरम आई,
बाजी जद धीमी पायल।
होठां पर बोल न आया,
सैनां में सैनां घायल।
बिरवा बतळावण लाग्या,
बायर झणकारण लागी।
नींदड़ली पलकां मसळी
जागण री वेळा आगी॥