चाळीसां चढ़तो कोई प्रेमी

कांई तो करैला बात

आपरी प्रीत सूं!

स्यात पूछैला बै सवाल

जका पूछूं- म्हैं थारै सूं..

आथण-दिनूगै।

पूछूं म्हैं-

म्हारो टिफण घाल दियो कांई?

पूछूं म्हैं-

आज बजार सूं कांई लावणो है?

पूछूं म्हैं-

टाबर नैं दवाई दे दीवी कांई?

पूछूं म्हैं-

थारी कमर रो दरद कींकर है अबै?

म्हारा तो म्हारा

थारा सवाल कठै न्यारा है!

पूछै थूं-

आथण चटणी सूं धिका लेसो कांई?

पूछै थूं-

टाबरां री फीस कद भरासो?

पूछै थूं-

अबकै आटो इत्तो मोटो कियां पिसायो?

पूछै थूं-

गणगौर पर पीरै जाय आवूं कांई?

आं सवालां में कींकर सोधै कोई

प्रीत रा ऐनाण

चाळीसां ढळता-उतरतां

पाक जावै प्रीत रो फळ

जिण रै रूप-रस-गंध नैं

कथण री कोनी हुवै दरकार

धरती सूं आभै तांई

आपोआप पसर जावै

प्रीत री महक।

स्रोत
  • पोथी : चीकणा दिन ,
  • सिरजक : डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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