म्हांरी सगळी खींचातांण

साव नैनी सी,

चिणक भरी बात माथै है,

कै कठै दुसमी रौ

टाबर रोवतौ देखां तौ

गोदी लेवण जितरौ

काळजौ बण्यौ रेवै।

साव नैनी बात माथै

थाबा खावां अपणै बाड़ै मांय

सांच री आंगळी झालण सारूं,

कै मुलकम मांय

मूछ अर चोटी राखणै रो हक

नी रेवै टोळां मांय बांट्योड़ौ।

साव नैनी बात तौ है

कै लुगायां रौ अंगियौ

बारै क्यों सूखै है,

साव नैनी बात है कै

मिनख कद मिनख बणै-

जद वा किणी रै बाळां मांय

फेरै हाथ, अर जोवै आंख्यां मांय

हंसतोड़ै गाला सूं।

काळजै री अेक-अेक नस माथै

फखत लगावणी पड़ै सहजता री झालर,

साव नैनी बात है

दुख नै हंस'र झेलणौ।

साव नैनी बातां इण आखै जगत नै

दीधा जुध अर महाजुध,

थां सोच्यौ म्हांरौ कहण वाजब कोनी,

म्हां सोच्यौ म्हांरौ कहण वाजब कोनी,

किणी रै हाथां मार्क्स,

किणी रै हाथां हिटलर,

साव नैनी बातां ही,

जिणनै सिगार री फूंक रै साथै,

उडावणी ही,

कै रेड वाइन रै घूंट साथै

गटकावणी ही।

स्रोत
  • पोथी : डांडी रौ उथळाव ,
  • सिरजक : तेजस मुंगेरिया ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै