घर रै अेक खास खूंणै मांय

मूंढौ लुकावती—

ठींडां पर लाख लागी,

कीं कोरी कीं काची

मूंधी मारी माटक्यां में मून

गुवाड़ी रौ धरम

पांणी रौ परींढौ है!

(अर परींढौ अैड़ौ

कै जिण में

कंठ भिजोवण पांणी नीं!)

फिळसै में बड़ता

फलांण जी समचार पूछै

कैवौ सगाजी

कैड़ा-क व्हिया मेह-पांणी?

जद कै सगैजी रै परींढै में

टांटिया बूंकै—

अर पेमै कुंभार री न्याई में

तिरसौ गदेड़ौ भूंकै,

सगोजी परींढै सूं पूछै

आभै पर उपाळा भाजै

अर सेवट फोग रै घोचै सूं

नीची धूण घाल्यां

बैठा आंगणौ कुचरै

नीं उतर

नी पड़ूतर दै

फगत कीं सूका आखर उथळावै

कांई कैवां जोसी!

आवौ, बैठां—

चिलम पीवां...

(हाल परींढै रै पांणी में कादौ है—

अर विंयां नीथरै भी कांई

वौ सांमी पड़्यौ घड़ौ

सफ्फां आधौ है!)

भायौ पखाल लेय आवतौ व्हैला,

आवौ बैठां—बंतळ करां

(सूका तिरसा क्यूं मरा—

जांणता थकां

कै परींढै में पांणी नीं!)

घणखरीख बिरियां तो म्हैं

परींढै पसवाड़ै ऊभौ देख्या करूं:

म्हारी मारू मां री आंख्यां में

कांठळ-सी ऊमटै—

मगरां-गोडां-नाड़ियां में

बीजळ्यां खिंवै

मौकळौ मेह बरसै

अर पछै डावी में गंगा

अर जींवणी में जमना

चौधारां चालती रैवै—

चालती रैवै...

सायत्

समंदर तांई पूगती व्हैला!

पण तिरसां मरती दादी

कीकर सुणावै कहाणी

जद कै

परींढै में छांट नीं पांणी।

स्रोत
  • पोथी : अंधार-पख ,
  • सिरजक : नन्द भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : जनभासा प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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