बा आसी
पण आंधी री पधेड़ियाँ चढ़’र आसी
क्यूं क बा है पाँगळी!
सगळा उड़ीकै उणनै
आभै माँय नी,
उठ रैया है गोट
हिरदां माँय!
उथळ-पुथळ माचगी
लोग उठावै लाग्या
राज-धरम उपराँ
आँगळी!