मन री चमकती चीताळ माथै,

सपनौ बण ग्यौ माछली रौ बचियौ,

समदर री छोळां सूं लड़थड़तौ,

अेक हबोळा सूं आयौ बारै

कळपै है वा पूरौ हुवण सारूं

उणनै ठाह है कै इण छोळां सूं

भिड़नौ नीं सीख्यौ,

पण बिन पाणी कींकर रैवां

धरा माथै।

कुण समझावै उण सपना नै,

कुण समझावै माछी रै बचियै नै,

आवणौ नीं

परगट होवणौ ईज नीं

अर जै उतपत हुय ग्यौ हुवै

तौ इण छोळां सूं कांई भै,

लै नीं मौजां मझधारां री,

रमै नीं जीवटता री

नागण लहरां रै फण माथै,

जावै नीं समदर रै पेटा मांय

अर काढ़ लावै नीं

पूरण-गत रा अेहनाण।

स्रोत
  • पोथी : डांडी रौ उथळाव ,
  • सिरजक : तेजस मुंगेरिया ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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