म्हारै दादा जी री
पुराणी हेली
हेली रै डागळै माथै
आभै खानी मुंडो करयां
पड्यो माटी रौ पाळसियो
निरखै है हाल ताईं
उण पंछीड़ां नै
नी आवै अबै बै
जका कदै ई आंवता सुस्तावण
आप री तिरस् बुझावण।
म्हैं देखूं
आज बौ ख़ुद
नीं जाणै कद सूं
तिरसो है
दादाजी री
तिरसी आंख्यां भांत
निरखती रैवै जिकी
आभै सूं स्यात
संस्कारां रै
उण सुक्कै पड्ये
जूने पाळसिये नै।