भरी दुपहरी भर्‌यो अंधारो

पाखी डरग्यो अठै विचारो

गेला में यम-चोर घेरल्यो

बिखर्‌यो सांसा चुग्गो सारो

तमस घिर्‌यो पूरब डरपावै

मनवा सांझ दौड़ती आवै॥1॥

आतुर विकल पगां में बिजली

बाट जोहती आशा मचली

भैभीत काँपती हवा देखने

खग टोळी नभ सूं निकळी

तूफां सूं मग घिर-घिर जावै

जीवड़ा सांझ दौड़ती आवै॥2॥

थूं होती तो बाट जोहती

सपन सजाती हियो मोहती

रीती चौखट भरम गमावै

ऊभी संध्या उठै सोहती

वैरागी मन दु:खड़ो गावै

साधी सांझ दौड़ती आवै॥3॥

विरही चकवो करै कूंकटां

मार्‌यो-मार्‌यो मत फिरै सूवटा

जग सूं व्हे तो विदा हुयी है

अपणापा रो मोह टूटता

सभी पराया निजरां आवै

मनवा सांझ दौड़ती आवै॥

स्रोत
  • पोथी : दरद डूँगरा : दरद समँदरा ,
  • सिरजक : नन्दकिशोर चतुर्वेदी ,
  • प्रकाशक : ज्ञान प्रकाशन मंदिर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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