पसीजतो रैयो घर मांय

सिलबट्टां रै बिचाळै

धान री तर्‌यां

अर

लोगड़ा हंसता रैया।

पण फेर भी म्हैं खुस हो

क्यूंकै

म्हैं जाणतो हो कै

आं लोगां नै म्हैं ईज

जीणै रो सहारो दियो हो।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : अंकिता पुरोहित ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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