अबार म्हांरै कनै
भासा नीं भासा री छिब छै
जिणनै म्हे पंपोळां
हेजां, लाड करां
बोलता राजस्थान नै
मायड़भासा बायरौ कैवणौ
राजनीत गिणै-सत्ता!
पण बोलता राजस्थान नै समझै कित्ताक छै?
राजस्थान जांणै ई कोनीं
के ‘अ’ सूं अनार व्है
वौ तौ ठेठ सूं अनार नै ‘दाड़म’ कैवतौ आयौ
राजस्थान तौ ‘सांठा’ नै ई ‘गन्ना’ बोलै
जांणै ई कोनीं
नारंगी बाजै ‘संतरा’ अर ‘अेंड़ काकड़ी’ बाजै ‘पपिता’!
इक्कीसमां सईका में औ भासाबायरौ प्रांत
कांई समाज री आरसी कोनीं?
जिणमें निजर आवतौ जथारथ
जथारथ री छिब छै।
म्हे पूछां पछै म्हांरौ ‘जथारथ’ कठै छै
इण लोकतंतर में
कांईं भासा रै पायै
कोई जथारथ नीं व्है म्हारै अठै
तौ पछै कोई बतावै म्हांनै
के आज रा कवि भासा में नीं लिख
भासा री छिब में लिखै छै
तौ पछै औ ई बतावै
पाठकां तांई साच पूगै
के उणरी छिब
साच री छिब साच नीं व्है!
आवौ रचनाकारां!
विचार करां
जे अपांरी रचनावां समाज री आरसी कोनीं
तौ पछै कांईं छै?
जे म्हे समाजू-जळ री माछळी नीं छां
तौ पछै
समाज टाळ जीवां क्यूं छां?