नऽऽईं

जसमल, नऽईं!

अबै इयां पांर नीं पड़ै

वौ आवै राव खें गार

थांरौ सत्त

थांरौ बोट

लेवण सारू

अर कौल भरै— थूं

म्हांरै खन्नै

थांनै रावळै ले चालू

थांरी गरीबी हटावूं

थांनै सेजां में बिठावूं

डोलर हींडै में हिंडावूं!

नऽईं जसमल!

नऽईं

अबै सुपनां री कावड़

देख्यां नीं सरै

थूं—समरथ!

थूं ओडां नैं भेळा कर

संघट्टण बणाय’र आगे हाल

अैड़ौ घाल घेरौ

कै हैलां रै उपरांखर सैंचन्नण व्है थांरौ डेरौ!

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण, जयपुर
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