(1)
म्है जोंवता रैया
मुंडो थारो,
थै गटकांवता रैया
हक म्हारौ,
पण अब थै धौस्यो
मूंडो थारो,
अर म्हैं खोसस्यां
हक म्हारौ।


(2)

मुंह भिंच्या आंख मिच्या
खड़या रैया इण आस मांय
कै मिलेलो हक म्हारौ
बीना मांग्या,
पण अब टूट रैयो है
बंधौ म्हारै सब्र रो
आपरै हक सारु,
सामल्यों
इण नै
अबार ई
नितर बेह जावेलो
म्हारै हक रै सैलाब मांय
थारो सारो कीं।

(3)

सुणौ!
अब गुलामी को करां नीं
डराया है थै घणा ही म्हानै,
अब को डरां नीं
सुणौ, अब गुलामी को करां नीं।

थारै सुख बपरावण खातर
म्हारी पीढ़ियां पच पच मरगी,
खुद रै पल्ले भुख ई पड़ी
थारी बां भखारी भरदी,
पण अब म्हैं,
इण ढाळ
पच पच को मरां नीं
सुणौ, अब गुलामी को करां नीं।

आच्छो थारो, माड़ो म्हारौ
अेड़ी थै रीत बणाई,
आप सारा ऊंचा बणग्या
म्हारी जग्यां नीच दिखाई,
पण अब म्हैं
थारो ओ जाळ
तोड़ फैंकस्यां परां नीं
सुणौ, अब गुलामी को करां नीं।

म्हारो हक दबायो थै
म्हारा थै सिरदार बणग्या,
थारै ही जुल्मां सूं म्हैं
दुखियां री पहचाण बणग्या,
पण अब म्हैं
म्हारौ हक खौसण सूं
लारै को टरां नीं
सुणौ, अब गुलामी को करां नीं।


(4)

बै लोगां नै सुपना दिखावै
लोग देखता रैवे,
बै लोगां नै बिलमावै
लोग बिलम ज्यावै,
बै लोगां नै गोळ-गोळ घुमावै
लोग घूम ज्यावै,
पण जद
लोग जाग जास्यी,
आप'रै हकां सारू
फैर कठै लुकता फिरसी
अे धोळपौसीया
पण ओ दिन आ'सी कदै....

(5)
ना बणाओ थै म्हाने
किणी मींदर री देवी,
ना कोई जरूरत है
म्हाने किणी ऊंचे ढोलिये री
क्यूं मनावो हो म्हारे खातर
कदे'ई बालिका दिवस
कदे'ई महिला दिवस
कै मतलब है बां नारां गो
जिका थै लगाओ कै
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ
कोई जरूरत कोनी म्हारी पूजा करणे री
कन्या पूजन
या फैर देवी पूजन रै नाम माथै
म्हूं तौ फगत इतरो मांगू
कै दे देवो म्हानै
हक म्हारो
इंसान होवण रो!

(6)

कोई तो है,
जिका बांध रैया है
आंखां माथै पट्टी थारे
अर कर रैया है
डांफाचूक
बळद दांई
जिको घुमण लाग रैयो है
कोल्हू रै च्यारुमेर
एक टिचकारी सूं
या फैर सोटी री मार,
कदेई कदेई तौ इसारो ही भौत है
टोरण खातिर थाने।

अरे भोळिया! कद तांई चालसी
इण आंधे मारग माथे?
जिण री कोई ठौर नीं है
कद समझेला
ओ खेल
जो खेलिजण लाग रैयो है
लगातार,
बणायै राखण खातिर
गौला थाने
जाग ज्यावो अबै ही
छोडो लारे चालणो
तोड़ो आं सांकळा ने
चाल पड़ो बीं मारग
जके पर मिल सके
थाने
हक थारो...

 

(7)

भाज सको थै आज
आं अबखायां सूं डरगै,
हो सके भाजणो पड़ै बठै सूं
जठै जा रैया हो भाज'र,
फेर नूंवी जिग्यां, फेर नूंवी जिग्यां
कठै तांई भाजोला?
कदे तांई?
कै देर जावोला
थारी आवण आळी पीढ़िया नै?
रण छोड़'र भाजणो?
सामणो करो
लड़ो आं हक दाबणवाळां सूं
अर दिखाओ थारी ताकत
बणाओ एक नूंवो संसार
जै करोला सामणो
थे सगळा मिल'र,
तो मिल जावेलो
थाने हक,
अर भाजणो पड़ेलो
फिंच्या मायं पूंछ घाल'र
जिका भजावण लाग रिया है
थाने आज....

(8)

सुणो!
थै मरस्यो
डर सूं
भूख सूं
बीमारी सूं
लड़ गै आपस मांय
नहीं तो कोई न कोई भ्यानै सूं‌।
पण थै मरो कोनी
लड़ गै
आप रे हक सारुं
सीख जावोला जद
लड़नो
अर मरणो
आप रो हक पावण सारुं
फेर देखां
किण री हिम्मत हुवैली
लुटण सारुं थानै....             

स्रोत
  • सिरजक : रामकुमार भाम्भू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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