लोकतंत्र सूं लोगां रौ विसवास ऊठतौ जावै है

राचण लागा होठ लोही सूं बाड़ खेत नै खावै है।

सांप रूखाळै सूंप्योड़ौ धन जद तक उणरा प्राण छूटै

पण अजगर गादी खूंदै चौड़ै बैठ खजांनौ लूटै

देवां किणनै दोस अरे जद भागीरथ सूं गंगा रूठै

सांनी कर किणनै समझावां बूंद-बूंद यूं सरवर खुटै

आखर-आखर आंटौ साजै बातां में बिलमावै है।

लोकतंत्र सूं लोगां रौ विसवास उठतौ जावै है

राचण लागा होठ लोही सूं बाड़ खेत नै खावै है।

कांनूनां री पोथ्यां माथै आरौ घाल पड़ी तरवारां

साचा दंड भरै झूठां नै मुळक करै नित री मनवारां

आगत रौ विसवास रचावण कितरा दिन तक मनड़ौ मारां

आंधा बोळा गूंगा बण बोल कठा लग धीजौ धारां

बरसां री दब्योड़ी माटी हाकै नै हाथ उठावै है।

लोकतंत्र सूं लोगां रौ विसवास उठतौ जावै है

राचण लागा होठ लोही सूं बाड़ खेत नै खावै है।

म्हारौ सुख भल मरै पड़ोसी इणनै वे कैवै आजादी

गळी-गळी में थांन चांतरा मिंदर है झगड़ां री गादी

लीला भगवा झंडा मिळनै रैयत बांटी आधी आधी

‘म्है’ री माया ऐड़ी पसरी अक्कल माथै चढ़गी बादी

स्वारथ री चकरी झिलियोड़ौ धरम गुळांचा खावै है।

लोकतंत्र सूं लोगां रौ विसवास उठतौ जावै है

राचण लागा होठ लोही सूं बाड़ खेत नै खावै है।

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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