रेत राजस्थान री

उडी पून सखी रै

गळबाथां घाल

मगन आणंद में

जोवण नै देस परदेस

धर कूंचां धर मंजलां

उडती-उडती

पूगी किणी अणजाण ठौड़

जठै जमी ही हथाई

न्यारी-न्यारी ठौड़ सूं आई रेतां री

जोर री

करै ही सगळी आप आपरै

गुणां री बडाई, घमंड में भागती

किणीं नै पांणी री सजळाई रौ घमंड

किणीं नै आपरै उपजाऊपणा रौ घमंड

कोई करै ही बखांण आपरै रंग रौ

तौ कोई आपरी कूख रा

फळां फूलां माथै मोदीजती ही

इतरै अेक जणी उणसूं पण पूछियौ

उणरै गुणां रौ म्यांनौ

वा कीं बोलै उणसूं पै’ला

सगळी खींखरां उडावती

बोली

तौ मुरधर री रेत है, साव कंगाल

तिरसी आद जुगाद सूं

निपजै कांटा झाड़

केर-सांगरी सा रूखा-सूखा

बाड़ा फळ.!

सुणतां पांण हंसी सगळी जणियां

खीं-खीं रा तिरस्कारी सुर में

मुळकी रेत राजस्थानी, झीणी सी’क

बोली साची केवौ बैनां

म्हैं बंजड़, रूखी-सूखी

अर तिरसी बेळू

नीं निपजै फळ-फूल, बाग बगीचा

थां सरीखा,

कारण कुदरत जांणै.!

म्हैं तौ जांणूं हूं

फगत इतौ कै

म्हैं हूं राजस्थान री

रगत पियोड़ी रेत

नीं रंजाई अठारी कुदरत म्हनै

पांणी पाय

पण रंजाई म्हनै

जोधां, सूरमां आपरौ रगत पाय

जिणरै पसाय बाजी म्हैं

रगत पीयोड़ी रेत

जिणरौ टीकौ काढ,

जिणरी आंण लेय

उतरै जोधा रणखेत मांय

पाथर जावै

मुळकता कटियोड़ा स्वाभिमानी सीस

जिण माथै

केसरिया फूलां रै उनमान

धर, धरम अर तिरिया री

रिछिया खातर

पसरै मै’क आं फूलां सूं

जिणरै आन बान अर सान री

च्यारूंकूंट, आज लग

निपजै जिणमें ठावा ठीमर

गै’रा गयांनी मीरां जाभां सा

तौ बात रा धनी

मेवाड़ी राणा प्रताप सा

वीर झूंझार मिनख रतन

म्हैं हूं साखी

साकां सत्याग्रहां अर

जौहर री झाळां री

केवट राखी हूं

उण स्वाभिमानी वांनी नै

आजलग म्हारै काळजै

मीठा फळ जांण,

राजस्थानी रज

बोलियां जावै ही धाराप्रवाह

उणरै कनै हौ अखूट म्यांनौ

आपरै गुणां रौ

पण सांम्ही बैठी

बड़बोली बैनां

कदकी सिळकगी ही उठा सूं

लाजां मरती.!

अंगेजती उणनै सिरमौर.!

स्रोत
  • पोथी : आळोच ,
  • सिरजक : डॉ. धनंजया अमरावत ,
  • प्रकाशक : रॉयल पब्लिकेशन, रातानाडा, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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