बाखळ में पसरी ठंडी बेकळू
'धुंई' रै च्यारूंमेर गरणाटा
भागमभाग।
रात — अेक आग।
रात —मां रै खोळै में हालरिया-हुलरावती
'आदिम बात'।
रात —पसरता 'हुंकारां री होड'।
भींतां रै ऊग्यावता कांन,
रात —पाबूजी रो थांन-
जमीं माथै उतरतौ आभौ-
धरमजलां-धरकूचां।
बोलां साग उतरचावता-
रूंख —समदर —चांद तारा
नदी —चिड़ी —नाग।
रात —'टाबरां रौ जमारौ'
— अेक जाग।
रात—बड़गड़ां-बड़गड़ां फलांगती
हींसती जावती घोड़ी 'केसर-काळवी'।
रूंखां रै पत्तै-पत्तै माथै
उतर्यावती भूतां री बरात।
रात—‘अेक आपघात’!
रात—अेक अजब अंधारै रौ भूगोल
कठैई चौरस, कठैई गोळ।
रात—आंख रौ आभास—'चाळीसै रौ जाप'
अंधारी खाली परात
'अेक भूखौ-नागौ घाव'
'मैणत रौ पड़ाव' —रात।
रात —लीर-लीर जीयाजूंण
चींथड़ा चुगती, पोस्टर उतारती-चेपती
'बस्तियां बदनाम'|
रात-खुद रै हाथां जहरी-जाम।
रात - रंगां में चढ़तौ-उतरती ज्वार-भाटौ
'अेक हांफ'।
राकसी-दाढां सूं निकळणै रौ अंसास-रात।
बूढ़ा बिसूरै —‘भोग्योड़ौ काळ-अकाळ'|
दड़वां में चीखता चित्रहार
अेक इंद्रजाल—रात।
अेक 'लिजलिजी निसरमाई री भींत’
जांणती अणजांण।
अेक प्रेत-नगरी भूतिया-लिबास-रात।
जीयाजूंण री आप-आपरी बास-रात।
रात—पसरती अछोर छोर
रात—रोसणाई री थळकण माथै
अंधारै री चौकीदार।
सगळा चेहरा स्याह।
रात—दोय मीठा बोल
‘चांनणै री चाह’।
अेक मीठी नींद, अेक खुमारी
सवालां माथै जड़ियोड़ी सांकळ—रात।
रात—लूट-पाट, चोरी-चकारी, अय्यारी।
रात—आंगण-भींतां री थारी-म्हारी।
अेक चाह।
रात—‘वाह-वाह’।