पुरस थे

परस’र जगावौ

म्हारी जात।

खिलावौ कंवळै हियै

कुंडली।

ब्रह्म-रस बस

मींचूं आंख

देखूं थांरै परमातम रूप नै।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : सन्तोष मायामोहन ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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