म्हैं भांगिया नित नया खितिज

नित नया भुरजाळ।

जठै-जठै बजाई रूक

रणमल्लां रा मुंडां सूं पाट दी मेदनी;

अर अजेय म्हारी कटक

लारला दस बरसां में जीत लिया तेतीस मुलक

रण रो रसियो म्हैं

म्हारै पराक्रम, विपख जोवै

आपरै पराभव री बाट!

साधारण समझ नै पांतरग्यो

'सेजां रै समर कोई पख हारै कोनी'

खड़ग सूं कोनी मरै अनंग

सैलां सूं विधै कोनी!

कळा है कांमण नै जीतणो!

सोधतो कोनी म्हैं, गमियां थनै!

मरियां, कोनी करतो पछतावो

पण थूं म्हारा पुरसारथ री उतार पांण

वर लियो अेक कवि नै।

तीखड़ी बोर जैड़ा कोटड़ा रा

धाड़ायत बाघा नै?

भारमली हरायदी म्हनैं

मेहणो लगाय दियो म्हारा पुरसारथ रै

व्रणां री औखद कठै?

अबै तो राणी कोनी चढैला

म्हारी पौळ

धरती ढबैला कोनी म्हारा सूं

अर कळंक लागैला म्हारा जस रै

विगतां में!

गुण गरभा भारमली!

यूं भर देवती म्हारी अपूरणता रा आळा

म्हनैं बणावती अेक पूरण नारी रो

पूरण पुरूस!

म्हनैं बगसती थारै इमी कूंपळा री

अगोचर बूंदा!

म्हैं राजा सूं बण जावतो रंक

भसमी रमाय लेवता!

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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