कविता देवती छी
रुतां, रूंखां, पुहपां नै नांव
वौपारी री बही ज्यूं नीं मंड
मंछती छी
रकम री आंक-विहूणी भासा में।
विधाता री सिरज्योड़ी चीजां, रुतां
पाछी दिरावण म्हांनै
कविता सूंपती रही
गुळ में रसीज्योड़ा सबद
कड़वा तूंबा री कड़वाट
तावड़ै तड़बड़ती रेत री आंच
आवगी थळी माथै मंडती धारियां
बायरा सूं धकै-लारै व्हैता
ठावी-ठीकी ठौड़ बायरा धोरा
फोटुवां में जिका दीसै अजब-गजब
पळकता काच री जात।
कविता!
थें दीवी वनापाति नै पैलोळ
थें दीनी संग्या, क्रियावां रै ओळावै
व्याकरण नै चाल
जांणै सूंपी व्है प्रथमी नै गति।
कविता!
थें लिखवाई
काळ रा कुहरांम सूं बचाय
म्हारा सूं बारैमासा वाळी प्रीत-पाती
कविता,
थें ईज संभाळ्या पाछा जूंण रा मुहावरा
सूंपी म्हांनै म्हांरी दुनिया
अैड़ी राती-माती करामाती कविता रै पांण
म्हैं अणूतौ राजी-बाजी छौ
हरछिण आपरै मन में धारतौ उणनै
कदैई नेहरी नीं छांडतौ उणनै
पण अेक दिहाड़ै अजब-गजब बीतगी
कविता म्हनै सूतौ छोड
वहीर व्ही गांवतरै जावण
के कांकड़ में गफलत सूं
उणरै पगां तळै आयगी
भूल-बूंटी।
पछै कांईं
म्हारी कविता पांतरगी सै-कीं
म्हैं कुण हूं तगात
आ बात जबरी के म्हैं कुण छूं
अेक कवि नै आ बात
कविता टाळ कुण बतावतौ!
सुध-बुध पांतर्योड़ी
वा करण लागी संगत हिंसा री
धा-छंट कूड़ बोलणौ सीखगी
विजातिया-विधरमी उणनै
लागण लागग्या आपरी जात
कविता पांतरगी नांव
जिका उण दिया पुहपां, रुतां, रूंखां नै
पांतरगी इंसानी-गना
आ ई भूलगी
के आवतै वगत में उणनै
सांयत, साच अर समता
थरपणी छी।
कविता व्हैगी साव डाफाचूक
अठी-वठी भाळती चितबंग्यां री गळाई
अलळ-बलळ मन में आवै ज्यूं बोलण लागगी
अठा तांईं के उणरी चूगती कविताई जाती रही
वा तौ गद्य बणणौ ई पांतरगी।
म्हैं कविता रा इण नवा रूप नै लेय
कांयस भुगततौ छौ
इत्ता में किणी बतायौ अेक टोटकौ
म्हारै समझ में कीं नीं आयौ
कविता टोटकौ सुणतां ई
न्हाटी नटाटूट
अर सांम्ही मिळी
अेक दूबळी सांवळी देह रा धणी
गेडी रै टेकै हालतोड़ा
बापू नै परसगी
उण रा सै दंद-फंद मिटगा।
‘भूल-बूंटी’ रा फेर सूं बारै आयां
कविता नै सै-कीं याद आयग्यौ
बापू री मिड़कल देही नै भेंटण सूं
उणरी आवगी माड़ाई जावती रही
अबै कविता ईज दिरावैला
म्हांनै म्हांरा सबद पाछा
म्हांरी आसा पाछी
म्हांरी सांसा पाछी
म्हांरी ओळख पाछी
म्हांरी भासा पाछी।