म्हारी आंख्या में
भरी छै धूळ,
धूंधाड़ो म्हारी सांस में
धूंळियो छै,
जीभ कै ओळयूं-दोळयूं
कड़ा कसैला स्वाद
फरबो करै छै।
रात-दिन
भर जवानी में
बूढ़ा होग्या बाळ
धोळा फक्क
उठावण बैल की नाईं
गांव भर को जोर लाग्यां पाछै भी
म्हूं ले सकूं पग
मन मर्यो कोई न्हं
गमग्यो।
आंख्यां,
सांस
जीभ
जवानी,
बाळ
अर पग
गर्याळा,
आंगणां,
पगडांड्यां
गेला
छपरा अर
चूंतरा छ।
मनख कोई न्हं म्हूं,
चंबल की कराड़ पै बस्यो
एक गांव छूं।