स्याव ऊपड़ै जणा काळजै, चींत ढबै नीं थ्यावस लेवै।
नांय हियै में स्यांत बापरै, ढाबै कुण ढाबण री कै’वै?
बड़ै गादड़ो मांय पेट रै,
डफळी चूक’र हुवै घाबरो।
पड़ै निकळ कानां री सुरळी,
जद हो ज्यावै किसब काबरो।
झोळी मांय जेवड़ा लाधै, भाव सौमती धरत्यां ढै’वै।
नांय हियै में स्यांत बापरै, ढाबै कुण ढाबण री कै’वै?
सिकळी चूक हुवै जद माणस,
बोली साटै जमीं कूचरै।
लाज लजै लजवंती आपै,
मुंह सूं दर नीं सबद ऊचरै।
बगतो रैवै चौफाळ वायरो, सोक्यूं काळ-समै रै बै’वै।
नांय हियै में स्यांत बापरै, ढाबै कुण ढाबण री कै’वै?
जमीं चिंगरगी लागै सगळै,
कूवै भांग पड़ी जद आखै।
सदै चैरखै पाखी-आळो
सरम-तणी लोई नै नाखै।
अठै-बठै कुचमाद पसरगी, कुबध वायरो बगतो रै’वै।
नांय हियै में स्यांत बापरै, ढाबै कुण ढाबण री कै’वै?
अबै लूंकड़ी छापळगी घट
रैय सांकड़ै समझ न कीं री।
मांय आपणै घाबो घालै,
जाणै कुण चतराई बीं री।
जणा हुवै नीढाळ मानखो, जीव आपरै सोक्यूं सै’वै।
नांय हियै में स्यांत बापरै, ढाबै कुण ढाबण री कै’वै?