मई सागर नै होम ना सोपाड़ मयं

वकेरायला हैं।

कारा कारा

गोर गट्ट लोड़ीया पाणा

एम लागे है

जाणै

जिन्दगी नूं जहर गरातक रोकी नै

जगै जगै

विराजमान थईग्या हैं,

नाना नाना शिवलिंग

नै इज

अमारी सभ्यता नै

संस्कृति पण!

लोड़ीया बणवा हारू भी

कई संघर्ष करवा पड़या हैं।

जाणै

कणी काठी सिताल उपर

जोवन ना मद मय

गांडी थई नदी ना

अट्टहासी झपाटा पड़्या

नै टूटी गई सिताल

कणा गरीब ना हपना वजू

थई ग्यं नानं बटकं

जेम वयं हरिये आग पेटी नी

पूर ना ताण मय

वेतै वेतै

आपणै आप ऊँ

लड़ते लड़ते

बणी ग्या

गोर गोर लोड़ीया पाणा

कोई अणनै पूजै

तो कोई लोड़ी हमजी

सटनी पण वांटे

पेट नो खाड़ो भरवा

पण तो सबने आले है

हीक

जीवण जीवणी थकी

जूजवा नी हिम्मत

नानं भूलकं नी

मुलकाव वजू।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : उपेन्द्र अणु ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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